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रतनगढ - कहानी दो जहां की (भाग 16)

निहारिका बड़े ही ध्यान से उसे पढ रही थी। जैसे जैसे वह आगे पढती जा रही थी उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह खुद इसी कहानी का हिस्सा हो। उसकी आंखो के सामने एक एक कर सारे दृश्य जैसे जीवंत होने लगे। वह देख पा रही थी एक बड़ा सा राजसी महल जो बिल्कुल नव निर्मित रतनगढ के जैसा दिख रहा था। 


और महल के एक हिस्से के एक बड़े राजसी कमरे मे राजा महाराजा बैठे हुए हैं। वे बड़े ही चिंतित दिख रहे हैं। उनके पास ही एक और व्यक्ति बैठा हुआ है जिसके वस्त्र कुछ कुछ पंडित जैसे हैं। उसके माथे पर तिलक लगा हुआ है और हाथो मे कुछ पन्ने फड़फड़ा रहे हैं। 

वे कह रहे थे रतनगढ की इस पावन जगह पर कई सारे दुर्व्यसनो का वास होने लगा है जिसके कारण गढ वाले महाराज का प्रकोप बढता जा रहा है। लाख बार मना करने के बावजूद राजकुमारो की स्थिति मे कोई सुधार नही हुआ है। अपितु वे मनमानी जैसा दुर्गुण अपना रहे हैं। आने वाली शिवरात्री के बाद का समय ऐसा होगा जिसकी किसी ने कल्पना भी नही की होगी। राज्य में अकाल पड़ेगा महाराज। जिसे हम और आप चाह कर भी बदल नही सकते।

निहारिका देख रही थी कि राजपंडित बहुत चिंतित थे उनकी छवि देख कर वह बुरी तरह चौंक गयी। क्युंकि वे हुबहू वैसे ही दिख रहे थे जैसे उसने देखा था भागते समय।

उसे स्मरण हुआ वह स्वप्न। किंतु उसने अपनी निरंतरता को टूटने नही दिया। वह आगे देख रही थी। महाराज ने उनसे इस विपदा को दूर करने का कारण पूछा। तब उन्होने बताया इस समस्या का एक ही समाधान है नरबलि। और उसके साथ ही कुंवर को यह शपथ लेनी होगी कि वे अब आगे से कभी किसी दुर्व्यसन का शिकार नही होंगे। इतना ही नही ये बलि होलिका दहन के पश्चात पड़ने वाली पहली अमावस्या की रात्रि को देनी होगी। वह भी किसी ऐसी कन्या की जो अर्धकुंवारी हो।

राजपंडित की बाते सुन कर निहारिका को बेहद तकलीफ हो रही थी। किंतु फिर भी वह चाह कर भी उन पंडित के विरूद्ध कुछ भी भला बुरा ख्याल अपने हृदय मे नही ला पा रही थी। वही टेबल पर बैठा समर उसके चेहरे पर बनते बिगड़ते हाव भावो को बखूबी देख पा रहा था। निहारिका को देख कर वह इतना समझ गया था कि निहारिका अतीत के उस भयावह हिस्से मे पहुंच चुकी है। उसके चेहरे पर खुशी के दो अश्रु झलके जिन्हे उसने चुपके से पोन्छ लिया।

महाराज परेशान हो चुके थे और वे उठकर अपने कमरे मे इधर से उधर घूमने लगे थे। निहारिका कक्ष के दरवाजे पर खड़ी होकर सब कुछ देख रही थी। 

महाराज आगे बोले – किंतु ऐसी लडकी हमे मिलेगी कहां राजपंडित जी। और हम यह बात कैसे पता लगायेंगे कि वह लड़की अर्ध कुंवारी है या नही... आपको नही लगता हमे कोई और उपाय ढूंढना चाहिये इस समस्या से निजात पाने के लिये। क्या कोई और तरीका नही हो सकता है कृपया बताये हमे?

अगर कोई और तरीका होता महाराज तब मै अवश्य ही उसे आपके सामने रखता। न कि ये सर्व निंदित कार्य का जिक्र भी आपके सामने करता।

महाराज खड़े होते हुए बोले “किंतु मुश्किल भी यही है राज पंडित जी हम ऐसी कन्या लायेंगे कहाँ से। इस तरह की बात भी अगर महल से बाहर गयी तो प्रजा विद्रोह पर उतर आयेगी। प्रजा असंतुष्ट होकर राज्य छोड़ देगी। और जब प्रजा ही नही होगि तब कैसा राज्य और कहाँ का राजा, इन दीवारो का। प्रजा पहले से ही कुमारो की हरकतो के कारण असंतुष्ट है। अब तो बस कुमार समरजीत का ही आसरा है वो जैसे ही पड़ोसी राज्य से भ्रमण के दौरान यहाँ आते है तब ही कोई बात बन सकती है अन्यथा रतनगढ राज्य भीषण अकाल देखेगा।”  कहते हुए महाराज अपने मखमली पलंग पर बैठ गये। 

राजपंडित जी सोचते हुए बोले, “महाराज एक रास्ता है, अगर आप इजाजत दे तब हम इस बारे मे कुछ बात करे।” निहारिका ने देखा, ऐसा कहते समय राजपंडित के गले से शब्द बमुश्किल निकल रहे थे। 
क्या रास्ता है राजपंडित जी आप बताइये हमे ? – महाराज के शब्दो मे व्यग्रता झलकी।

महाराज... मेरी बेटी... कालिंद्री। उन्होने बड़ी मुश्किल से इन शब्दो को पूरा किया।

राजपंडित जी... महाराज बड़ी तेजी से चीखे। और उठकर खड़े हो गये। निहारिका भी अवाक रह गयी ये जानकर कि एक पिता राजभक्ति मे इतना निष्ठुर हो सकता है।

जी महाराज... और कोई रास्ता नही है हमारे पास। मेरी बेटी महल मे ही रहती है बिल्कुल राजकुमारी की तरह। इस राज्य की बेटी है वो राज्य जब संकट मे है तब अपने प्राणो का मोह छोड़ने से पीछे नही हटेगी वो। ऐसा मेरा विश्वास है महाराज। अब राज्य पर आये संकट को केवल वह ही टाल सकती है महाराज अन्य कोई विकल्प शेष नही है – कहते कहते राजपंडित का गला भर आया। वहीं निहारिका अवाक हो सोच रही थी क्या सच मे राजपंडित के लिये ये फैसला लेना इतना आसान रहा होगा। हर्गिज नही। एक पिता के लिये ये फैसला लेना इतना आसान कभी नही होता है।

महाराज बोले – इस राज्य की किस्मत मे पहले से ही एक भी बेटी नही है। और एक आपकी बेटी है भी तब उसे आप राज्य की सलामती के लिये भेट करने की बात कर रहे हैं। क्या आपको तकलीफ नही हो रही है ऐसा सोच कर राज पंडित जी? – महाराज ने सवाल किया और वे काफी दुखी लग रहे थे।

महाराज हम राजवंशी की शान ही इसी मे है जरूरत पड़ने पर मन कड़ा कर फैसला कर लेते हैं।

महाराज ने उनके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, “ईश्वर के लिये ये अनर्थ मत करें आप। हम कोई और रास्ता ढूंढते है नही तो राज ज्योतिषी को बुलवायेंगे वह भविष्य की परतो को खन्गालते हुए कोई रास्ता देख लेंगे लेकिन आप ये विचार अपने मन से निकाल दें।

महाराज, आंखे बंद कर लेने से सच नही बदल जाता। सच यही है कि हमारे पास ज्यादा वक्त नही है। हमे कोई न कोई निर्णय जल्द ही लेना होगा। शिवरात्रि मे ज्यादा वक्त नही बचा है। उससे पहले मुझे ऐसा कार्य करना है जिससे मेरी पुत्री अर्ध कुवारी रुप मे परिवर्तित हो जाये – यह कहते समय उन्होने अपनी मुठ्टिया भींच ली और आंखो के अश्रु को रोकने का पूरा प्रयास कर रहे थे। 

निहारिका को महसूस हुआ कि उसके पीछे भी किसी की आहट है उसने पीछे मुड़ कर देखा तो किसी को दूर जाते हुए पाया। निहारिका फौरन उसके पीछे गयी उसने देखा वह एक युवा पुरुष था जो किसी हड़बड़ी मे भागा जा रहा था। शायद इसने महाराज और राजपंडित जी की बाते सुनी है। निहारिका ने सोचा और वापस उस कमरे के दरवाजे पर आई तब वहाँ कोई नही था।

राज पंडित जी ने अपनी प्यारी बेटी कालिंद्री की नरबलि के लिये फैसला किया। समय बीतता जा रहा था और शिवरात्रि के पावन अवसर पर एक दिन पहले पड़ोसी राज्य से कुंवर समरजीत सिंह वहाँ आये। किंतु इस बार उनके साथ पड़ोसी राज्य की राजकुमारी भी आई थी हीर... 

हीर... ये क्या था निहारिका ने किताब बंद करते हुए सोचा। समर मुस्कुराते हुए बोला, “ यही इस किताब की खासियत है निहारिका, तुम अतीत का हिस्सा हो इसीलिये ये किताब तुम्हे अतीत के उस हिस्से मे ले गयी जहाँ से रतनगढ के शापित होने की कहानी शुरू हुई। अब आगे पढो तुम खुद ब खुद सब समझती जाओगी। निहारिका को अपनी बहनो की याद आई और वो उनके बारे मे सोचने लगी। 
समर बोला – अभी जो भी घट रहा है वह सब बिना किसी वजह के नही घट रहा है निहारिका। वर्तमान सुधारने के लिये तुम्हारा अतीत को जानना बेहद जरूरी है। 

न... नही समर अभी हमारा हमारी बहनो के बारे मे जानना बेहद जरूरी है। इसमे कोई शक नही है कि रतनगढ का इतिहास वाकई रोमांचकारी है। कहते  हुए उसने किताब वापस रो मे रख दी और मुड़ कर बाहर की ओर आने लगी। किंतु टेबल लैम्प की रोशनी मे उसके कदम ठिठक गये और वह गौर से दीवार पर टंगी तसवीर देखने लगी।

जारी....

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4 Comments

shweta soni

30-Jul-2022 08:18 PM

Bahut achhi rachana

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Swati chourasia

12-Jan-2022 08:33 PM

Awesome story every part is interesting 👌👌

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Roshan

10-Jan-2022 05:32 PM

Bahut acha

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